Description
आत्मा में किसी प्रकार का जाति-भेद नहीं है; उसमें ‘जाति-भेद हैं’, यह मानना भ्रान्ति है। इसी प्रकार ‘आत्मा का जीवन या मरण या कोई गति अथवा गुण हैं’, यह भावना भी भ्रम है। आत्मा का कभी भी परिवर्तन नहीं होता, न वह कहीं आती है, न जाती है। वह अपनी समग्र अभिव्यक्तियों की चिरंतन साक्षिस्वरूप है, किन्तु हम उन अभिव्यक्तियों को ही आत्मा समझ बैठते हैं। यह अनादि अनन्त भ्रम अनन्त काल से चला आ रहा है। (विवेकानन्द साहित्य, Vol. 7, Pg. 44)
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