Let nothing stand between God and your love for Him. Love Him, love Him, love Him; and let the world say what it will. Love is of three sorts—one demands, but gives nothing; the second is exchange; and the third is love without thought of return—love like that of the moth for the light. (Complete Works of Swami Vivekananda, v. 7 pg. 09)

ईश्वर और उनके प्रति तुम्हारी भक्ति – दोनों के बीच कोई भी अन्य वस्तु नहीं होनी चाहिए । उनकी भक्ति करो, उनकी भक्ति करो, उनसे प्रेम करो । लोग कुछ भी कहें, कहने दो, उसकी परवाह मत करो । प्रेम (भक्ति) तीन प्रकार का होता है – पहला वह जो माँगना ही जानता है, देना नहीं; दूसरा है विनिमय; और तीसरा है प्रतिदान के विचार मात्र से भी रहित, प्रेम- दीपक के प्रति पतंग के प्रेम के सदृश ।’

ईश्वर और उनके प्रति तुम्हारी भक्ति – दोनों के बीच कोई भी अन्य वस्तु नहीं होनी चाहिए । उनकी भक्ति करो, उनकी भक्ति करो, उनसे प्रेम करो । लोग कुछ भी कहें, कहने दो, उसकी परवाह मत करो । प्रेम (भक्ति) तीन प्रकार का होता है – पहला वह जो माँगना ही जानता है, देना नहीं; दूसरा है विनिमय; और तीसरा है प्रतिदान के विचार मात्र से भी रहित, प्रेम- दीपक के प्रति पतंग के प्रेम के सदृश ।’

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