Description

श्रीमद्भागवत को समस्त पुराणो में श्रेष्ठ-महापुराण कहते हैं । स्वयं भागवत में ही इसकी महिमा का सुन्दर निरूपण हुआ है- ‘सर्ववेदान्तसार’ हि श्रीभागवतमिष्यते। तद्रसामृततृप्स्य नान्यत्र स्याद्रति: क्वचित् ।’ – ‘श्रीमद्भागवत वेदान्त का सार है । जो व्यक्ति इसके रसामृत का पान करके परितृप्त हो जाता है, उसकी अन्यत्र कहीं भी आसक्ति नही रह जाती।’

श्रीरामकृष्ण के जीवन की एक घटना भी इस ग्रन्थ की महिमा को प्रकट करती है । एक बार वे भागवत की कथा सुनते-सुनते भावाविष्ट हो गए। तभी उन्हें श्रीकृष्ण की ज्योतिर्मय मूर्ति के दर्शन हुए। मूर्ति के चरणों से रस्सी की भाँति एक ज्योति निकली । सर्वप्रथम उसने भागवत को स्पर्श किया और उसके बाद श्रीरामकृष्ण के सीने से लगकर उन तीनों को कुछ देर के लिए एक साथ जोड़े रखा । इससे श्रीरामकृष्ण के मन में दृढ़ धारणा हो गई कि भागवत, भक्त और भगवान-तीनों एक हैं तथा एक के ही तीन रूप हैं ।